सिर्फ बस्ती के उजड़ने से नहीं सिर्फ आदमी के मरने से नहीं सिर्फ गाछ के उखड़ने से नहीं एक पत्ती के झरने से भी फर्क पड़ता है।
हिंदी समय में कृष्णमोहन झा की रचनाएँ